कोहराम लाइव डेस्क : काश हम अपने बेटे को “No” सुनने की आदत डलवाएं होते! अगर बात करें किसी भी लड़की की, तो कहीं ना कहीं उनके मन एक भय रहता है। भले आज के समय में लड़कियां शेयर करने से डरती हैं। पर “भय” या फिर इनसेक्यूरिटीज उनके मन में जगह बना ही लेती है।
काश हम अपने बेटे को “No” सुनने की आदत डलवाएं होते
लड़कियों को बचपन से ही सभी चीजों में रोक-टोक किया जाता है। इसका कारण भी सेफ्टी इनसेक्यूरिटीज ही होती है। क्यों सिर्फ लड़कियों को ही समझाया जाता है? क्या लड़के इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं?
हाल ही में हरियाणा में निकिता को सरेबाजार गोली मार दी गई। वजह- निकिता ने तौफीक का प्यार ठुकरा दिया था। निकिता, जो IAS बनना चाहती थी। सिर्फ निकिता ही अकेली नहीं, ऐसी लाखों लड़कियां है जो रोज सड़कोंं पर इस खतरे और डर के साथ निकलती है।
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लड़की ने जरा इनकार क्या किया, मर्दों का इगो कांच की तरह झन्न करके टूट जाएगा। आखिर वो खुद को समझती क्या है? ऐसे कौन से सुर्खाब के पर लगे हैं? चोटिल इगो को मर्द के यार-दोस्त और उकसाते हैं।
अरे, कहीं किसी और के साथ तो लफड़ा नहीं चल रहा! कल खूब बन-ठनकर कहीं गई थी। इगो सांप की तरह फुफकार मारता है और फिर लड़की को कुचलने की तमाम कवायद चल पड़ती है। जिस चेहरे पर इतरा रही है, उसे ही खत्म कर देते हैं।
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कहीं की न रहेगी और ये लीजिए, तुरंत एसिड की बोतल आपके हाथ में आ जाती है। जिस शरीर को इतना सहेज रही है, उसे ही रौंद देते हैं। कहीं की न रहेगी और फिर होता है गैंगरेप। पसंद करने वाला मर्द दावत की तरह उसे अपने साथियों में भी परोसता है। चटखारे लेकर लड़की को भोगते हुए वो भूल जाता है कि कल ही तो वो इसी लड़की को दिलोजान से चाहने के दावे कर रहा था।
क्या लड़कियां सड़क पर निकलते ही किसी मर्द की जागीर बन जाती हैं? या फिर ये आपके नाजुक कानों का नुक्स है, जो केवल “हां” ही सुन पाता है।
वैसे इनकार न सुन पाना अकेले हिंदुस्तानी मर्दों की बपौती नहीं। साल 2014 में कैलिफोर्निया के सांता बारबरा में इलियट रोजर नाम के युवक ने 6 औरतों को गोलियों से भून दिया और 14 को घायल कर दिया। पकड़े जाने के बाद युवक ने माना कि जितना मुमकिन हो, वो उतनी औरतों को मारना चाहता है।
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मर्द कहते हैं कि औरतें बेहद छिछली होती हैं और अच्छी कद-काठी या पैसों पर मरती है। उन्हें चमकते दिल से कोई सरोकार नहीं। क्या सचमुच! आप मर्द इतना ही चमकीला दिल रखते हैं? और यकीन मानो लड़कियों, थोड़ी गलती तो तुम्हारी भी है। सड़क पर जैसे ही लड़के ने तुम्हें अपनी जागीर क्लेम किया, सहमकर उसे टालने की बजाए पलटकर एक तमाचा जमा देती तो हाल-ए-किस्मत ऐसी न होती।
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याद है वो दिन, जब तुम्हारे ट्यूशन से बाहर निकलते ही लड़कों का एक ग्रुप ठहाका मारते हुए हंसने लगा था। तेज-तेज पैडल मारते हुए घर भागने की बजाए रुक जाती। आंखों में आंखें डालकर उन लड़कों को दो तमाचे रसीद कर देतीं, तो कॉलेज या दफ्तर जाते हुए चाकुओं से न गोदी जातीं।
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बेचारे मर्द भी क्या करें। जिम्मेदारी सिर पड़ी तो निभाएंगे ही। लिहाजा, सड़क पर चलती जिस लड़की पर आंखें दो घड़ी टिक जाएं, उसे ही प्रपोज करने को तुल जाते हैं। साथ में कृतार्थ करने का भाव। मैंने पसंद किया तो हां तो बोलेगी ही। इस डर में कि चेहरा और होंठ और छातियां एसिड से नहीं झुलसेंगी, अगर केवल मुंडी हिलाते हुए हां कह देती है।
क्या ये तस्वीर कुछ और नहीं होती?
अगर हम अपने बेटों को मांसपेशियों की ताकत के साथ न सुनने की शक्ति भी देते। उन्हें घुट्टी में ये पिलाकर कि ‘न’ शब्द तुम्हारे लिए भी बना है बरखुरदार।
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