कोहराम लाइव डेस्क : नवरात्रि के समय में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, शारदीय नवरात्रि के समय में ही दुर्गा पूजा का उत्सव भी मनाया जाता है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि से दुर्गा पूजा का शुभारंभ होता है और दशमी के दिन समापन होता है। शारदीय नवरात्रि की षष्ठी से दुर्गा पूजा का आगाज होता है। दुर्गा पूजा खासतौर पर बिहार, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा, त्रिपुरा, पूर्वी उत्तर प्रदेश समेत देश के अन्य भागों में मनाया जाता है। उसी में षष्ठी तिथि से दुर्गा पूजा के प्रारंभ से मां दुर्गा के साथ माता लक्ष्मी, माता सरस्वती, भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है।
दुर्गा बलिदान
दुर्गा बलिदान का तात्पर्य दुर्गा पूजा के समय दी जाने वाली पशु बलि से है। यह हमेशा नवरात्रि की नवमी तिथि को दी जाती है। बलिदान के लिए अपराह्न का समय अच्छा माना गया है। हालांकि अब लोग पशु बलि की जगह सब्जियों के साथ सांकेतिक बलि देते हैं।
Sindoor Khela
जिस दिन मां दुर्गा को विदा किया जाता है यानी जिस दिन प्रतिमा विसर्जन के लिए ले जाया जाता है, उस दिन बंगाल में Sindoor Khela या सिंदूर उत्सव होता है। यह विदाई का उत्सव होता है। इस दिन सुहागन महिलाएं पान के पत्ते से मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं। उसके बाद एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और उत्सव मनाती हैं। एक दूसरे के सुहाग की लंबी आयु की शुभकामनाएं भी देती हैं। ऐसी भी मान्यता है कि मां दुर्गा 9 दिन तक मायके में रहने के बाद ससुराल जा रही हैं, इस अवसर पर सिंदूर उत्सव मनाया जाता है।
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