कोहराम लाइव डेस्क : हम सभी लोग भक्ति या Devotion अवश्य करते हैं, पर सांसारिक मोह-माया में फंस कर तल्लीन और एकाग्र मन से भक्ति में लीन नहीं रह पाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि हम सिर्फ अपनी इच्छाओं की पूर्ति के पीछे भागते रहते हैं। इस कारण भक्ति या Devotion भी एकाग्र मन से नहीं कर पाते हैं। जबकि भक्ति के लिए सभी मोह-माया का त्याग जरूरी है।
एक बार रामकृष्ण परमहंस, जो कि स्वामी विवेकानंद के गुरु थे, के पास उनके एक शिष्य आए। उन्होंने उनसे पूछा, समाज में अधिकतर लोग अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए दिन-रात काम करते हैं, लोगों की यही कोशिश रहती है कि किसी तरह हमारी इच्छाएं पूरी हो जाएं। ऐसी ही एकाग्रता भगवान की भक्ति के लिए क्यों नहीं बन पाती है? हमारी अज्ञानता को कैसे दूर किया जा सकता है?
सांसारिक वस्तुएं सिर्फ शारीरिक सुख ही देती हैं
इस पर रामकृष्ण परमहंस जी ने जवाब दिया कि सांसारिक वस्तुएं शारीरिक सुख प्रदान करती हैं। यही मोह है, जब तक इस मोह का अंत नहीं होगा, तब तक व्यक्ति भगवान की भक्ति में मन नहीं लगा पाएगा। एक बच्चा खिलौने से खेलने में व्यस्त रहता है और अपनी मां को याद नहीं करता है। जब उसका मन खिलौने से भर जाता है या उसका खेल खत्म हो जाता है, तब उसे मां की याद आती है। यही स्थिति हमारे साथ भी है।
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उन्होंने आगे कहा कि जब तक हमारा मन सांसारिक वस्तुओं और कामवासना के खिलौने में उलझा है, तब तक हमारी एकाग्रता भगवान की भक्ति में नहीं बन पाएगी। भक्ति करने के लिए हमें सुख-सुविधाओं और भोग-विलास से दूरी बनानी चाहिए। जो लोग भक्ति करना चाहते हैं, उन्हें अपनी सभी सांसारिक इच्छाओं का त्याग करना होता है।
इच्छाओं को त्यागने से ही मिलेगी शांति
रामकृष्ण परमहंस जी ने आगे कहा कि जब तक हम इन इच्छाओं में उलझे रहेंगे, तब तक भगवान की भक्ति नहीं कर सकते हैं। इच्छाओं को त्यागने के बाद ही भक्ति में एकाग्रता बन सकती है। वरना पूजा-पाठ करते समय भी मन भटकता रहता है, एकाग्रता नहीं बन पाती है। ऐसी पूजा का पूरा लाभ नहीं मिलता है। पूजा के बाद भी मन अशांत ही रहता है।
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