रांची : रावत को राहत, CBI जांच पर रोक : रघुवर सरकार के दौरान झारखंड बीजेपी के प्रभारी रहे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने 29 अक्टूबर को उनके खिलाफ लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों की CBI जांच का आदेश देने संबंधी नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी। यह मामला रावत के मुख्यमंत्री बनने से पहले का है।
झारखंड के गो सेवा आयोग में नियुक्ति में भ्रष्टाचार का आरोप
दो पत्रकारों ने आरोप लगाया था कि वर्ष 2016 में झारखंड के ‘गो सेवा आयोग‘ के अध्यक्ष पद पर एक व्यक्ति की नियुक्ति का समर्थन करने के लिए रावत के रिश्तेदारों के खातों में धन आवंटन किया गया था। उस वक्त त्रिवेंद्र सिंह भाजपा के झारखंड प्रभारी थे।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि मुख्यमंत्री को सुने बगैर ही हाईकोर्ट द्वारा इस तरह का सख्त आदेश देने से सब चकित रह गए, क्योंकि पत्रकारों की याचिका में रावत के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध भी नहीं किया गया था।
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पक्ष सुने बगैर CBI प्राथमिकी दर्ज नहीं कर सकती
रावत की ओर से अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा सुनवाई के दौरान कहा कि मुख्यमंत्री का पक्ष सुने बगैर प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती और इस तरह का आदेश निर्वाचित सरकार को अस्थिर करेगा। वेणुगोपाल ने पीठ से कहा, एक निर्वाचित सरकार को इस तरह से अस्थिर नहीं जा सकता। सवाल यह है कि पक्षकार को सुने बगैर ही क्या स्वत: ही इस तरह का आदेश दिया जा सकता है।
हाईकोर्ट ने क्या आदेश दिया था
नैनीताल हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ आरोपों की प्रकृति पर विचार करते हुए सच को सामने लाना उचित होगा। यह राज्य के हित में होगा कि संदेह दूर हो। इसलिए मामले की जांच सीबीआई करे।
हाईकोर्ट ने यह फैसला दो पत्रकारों उमेश शर्मा और शिव प्रसाद सेमवाल की दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनाया था। इन याचिकाओं में पत्रकारों ने इस साल जुलाई में अपने खिलाफ भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज की गई प्राथमिकी को रद्द करने का आग्रह किया था।
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