गलवान घाटी की घटना को दोहराने की फिराक में थे चीनी सैनिक
नई दिल्ली: दक्षिणी पैंगोंग में रेजांगला से करीब एक किलोमीटर की दूर पर स्थित मुखपरी पहाड़ी पर चीनी सैनिकों ने सोमवार की शाम घुसपैठ करने की कोशिश की।
यह रणनीति दृष्टि से बेहद अहम है। यदि इस चोटी पर चीनी सेना काबिज हो जाती तो वह पैंगोंग इलाके में भारतीय सैनिकों की तैनाती से लेकर आवाजाही तक पर नजर रख सकती थी, लेकिन सेना ने उसकी कोशिश को विफल करार दिया।
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सेना के सूत्रों के अनुसार सोमवार को करीब छह-सात हजार चीनी सैनिक हथियारों के साथ-साथ रॉड, डंडों एवं अन्य नुकीले हथियारों से भी लैस थे। ऐसा प्रतीत होता है कि वे गलवान घाटी की घटना को दोहराना चाहते थे।
गलवान घाटी में इसी प्रकार के हथियारों के हमले में 20 भारतीय जवान शहीद हुए थे, लेकिन उस घटना के बाद से सेना हर प्रकार की स्थितियों के लिए तैयार थी, इसलिए, चीनी सेना की कोशिश नाकाम हो गई। भारतीय सेना ने हाल के दिनों में पैंगोंग इलाके में कई स्थानों पर अपनी तैनाती नए सिरे से की है। उसने रणनीतिक रूप से कई अहम चोटियों पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है। ऐसा करना इसलिए जरूरी था, क्योंकि चीनी सेना फिंगर-4 एवं फिंगर-5 की चोटियों पर डटी हुई थी, जबकि भारतीय सेना निचले इलाकों में थी।
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पिछले सप्ताह भारतीय सेना ने ब्लैक टॉप समेत कई चोटियों पर मोर्चा संभाला। इससे वह चीनी सेना से बेहतर पॉजीशन में आ गई। इतना ही नहीं भारतीय सेना ने मुखपरी पहाड़ी पर भी अपनी मौजूदगी कायम की है। चीन की तरफ से मुखपरी पहाड़ी का जिक्र शेनपाओ माउंटेन नाम से किया जा रहा है।
सिंह ने बताया कि जब लगातार कई दौर की सैन्य कमांडर स्तर की वार्ता के बाद भी चीन पैंगोंग इलाके से पीछे नहीं हटा तो पिछले सप्ताह भारतीय सेना ने आक्रामक रुख अपनाया और पैंगोंग इलाके में रणनीतिक रूप से अहम कई चोटियों में ऊंचे स्थानों पर पॉजीशन संभाल ली। इससे भारतीय सेना की स्थिति काफी बेहतर हो गई थी। सिंह कहते हैं कि सैन्य कमांडर समेत कई वार्ताओं में तनाव दूर करने का कोई नतीजा नहीं निकला है। इसलिए राजनयिक स्तर पर इस मुद्दे को सुलझाने की जरूरत है। इसलिए बकायदा दोनों देशों को समझौता करना चाहिए और उसका एलएसी पर क्रियान्वयन सुनिश्चित करना चाहिए।