कोहराम लाइव डेस्क : नवरात्रि के पांचवें दिन देवी के स्वरूप स्कंदमाता की पूजा होती है। Prime Minister नरेंद्र मोदी ने ट्विटर के माध्यम से देशवासियों को नवरात्र के पांचवें दिन की शुभकामनाएं दी हैं। कार्तिकेय भगवान की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। इन्हें सदा देवी भी कहा जाता है। इसलिए सोशल मीडिया पर सदा देवी ट्रेंड कर रहा है। Prime Minister मोदी अपने संदेश में कहा है कि नवचेतना की सृजन करने वाली देवी स्कंदमाता का आशीर्वाद हम सभी देशवासियों पर हमेशा बना रहे।
चार भुजाओं वाली हैं देवी स्कंदमाता
स्कंदमाता का स्वरूप बेहद निराला है। उनकी चार भुजाएं होती हैं। स्कंदमाता ने अपने दो हाथो में कमल का फूल पकड़ रखा है। उनकी एक भुजा ऊपर की ओर उठी हुई है जिससे वह भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। एक हाथ से उन्होंने अपनी गोद में बैठे पुत्र स्कंद को पकड़ रखा है। माता कमल के आसन पर विराजमान हैं, जिसके कारण स्कंदमाता को पद्मासना भी कहा जाता है। इनका आसन सिंह है।
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मां की पूजा से होती है संतान सुख की प्राप्ति
कहा जाता है कि नवरात्र के पांचवे दिन जो भी भक्त स्कंदमाता की पूजा करता है, उसे मन इच्छानुसार फल के साथ ही संतान सुख की प्राप्ति होती है। इसके साथ यश, बल और धन भी मिलता है। शास्त्रों में मां स्कंदमाता की आराधना का काफी महत्व बताया जाता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक तेज और कांतिमय हो जाता है। अगर मन को एकाग्र करके स्कंदमाता की पूजा की जाए तो भक्त को किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता है।
कार्तिकेय को देवताओं का सेनापति कहा जाता है। स्कंदमाता को अपने पुत्र स्कंद से बेहद प्रेम है। जब धरती पर राक्षसों का अत्याचार बढ़ा तब स्कंदमाता ने सिंह पर सवार होकर दुष्टों का नाश किया। स्कंदमाता को अपना नाम अपने पुत्र का साथ जोड़ना बेहद पसंद है। इसके कारण इन्हें स्नेह और ममता की देवी भी कहा जाता है।
ऐसे करें मां की पूजा
सबसे पहले स्कंदमाता को कमल का फूल अर्पित करें। मां को चंपा का फूल चढ़ाकर भी प्रसन्न कर सकते हैं। इसके साथ ही ऊं देवी स्कन्दमातायै नम: का जाप करें। इस दिन माता को अलसी का भोग और केले का भोग जरूर लगाएं। स्कंदमाता की पूजा के दौरान सप्तशती का पाठ भी करें। देवी स्कंदमाता की विधिवत पूजा करने के मां की विशेष कृपा बनी रहती है।
मां के मंत्र इस प्रकार हैं
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
‘ॐ स्कन्दमात्रै नम:..’
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया.
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
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