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अपमान की चोट ने ‘नालायक’ वेटर को बना दिया Hotel King

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  • स्विटजरलैंड के ब्रिग शहर के एक होटल में काम करनेवाले वेटर ने खड़ा कर दिया होटलों का सम्राज्‍य
  • 30 देशों में चमकते हैं 100 से अधिक होटल और 27,650 से ज्यादा शानदार कमरे
  • 1850 में जन्‍मे सेजार रित्‍ज की कामयाबी की दास्‍तान आज भी देती है प्रेरणा
  • सेजार का निधन 1918 में हो चुका है, पर उनके होटलों में गूंजते हैं बेमिसाल जज्‍बे के निशान  

कोहराम लाइव डेस्‍क : Hotel King : हम सुनते हैं कि अमीरी-गरीबी किस्‍मत का खेल है। मां लक्ष्‍मी की कृपा हो गई तो मालामाल। अकृपा हो गई तो कंगाल। और इसके साथ यह भी कि लक्ष्‍मी चंचला होती हैं अर्थात दौलतमंद को कभी यह गुमान नहीं पालना चाहिए कि लक्ष्‍मी उसके घर में कैद हैं। अल्‍लाह मेहरबान तो गदहा पहलवान जैसी कहावत सुनी है। भगवान जब देता है तो छप्‍पर फाड़कर देता है। मतलब यह है कि लाख कोशिश कीजिए भगवान के चाहे बिना कुछ हासिल नहीं होगा। क्‍या करें गरीबी जैसे भगवान ने किस्‍मत में लिख दी है। गरीबी न जाने कैसे-कैसे पापड़ बेलवाती है। गरीबी की मार सारे सपनों को चकनाचूर कर देती है। इन सब बातों के बीच यह नहीं भूलना चाहिए कि तकदीर की सब रेखाएं कर्म और संघर्ष के ताप से ही बनती हैं। अपमान या अनादर ने मन में कुछ ठान लेने की प्रेरणा जगा दी, तो कामयाबी का आकाश गढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। स्‍काई ऑफ सक्‍सेस गेट्स विजिबल। फ्लाइंग सक्‍सेस बिकम्‍स श्‍योर। जी हां, हम बात कर रहे हैं स्विटजरलैंड के ब्रिग शहर के एक होटल में काम करनेवाले वेटर सेजार रित्‍ज की, जिसे अपमानित और नालायक कहकर होटल से बाहर निकाल दिया गया और बाद में उसने अपनी लगन से कई देशों में होटलों का साम्राज्‍य खड़ा कर दिया। वह होटल किंग के नाम से मशहूर हो गया।

दुत्‍कार में मिलीं सारी कमियों को किया दूर

सेजार ने खुद को सुधारा। ताने और दुत्‍कार में मिलीं सारी कमियों को दूर किया। होटल व्‍यवसाय में सफल होने के लिए जोश, जुनून और जज्बा पैदा किया। अच्‍छे लोगों की टीम बनाई और कामयाबी की दास्‍तान लिखी। आज के समय में हम भूल नहीं सकते कि 15 साल के जिस बच्‍चे सेजार रित्ज को होटल उद्योग के अयोग्य करार दिया गया था, आज उसके होटल समूह के पास दुनिया के 30 देशों में 100 से ज्यादा होटल और 27,650 से ज्यादा शानदार कमरे हैं। होटलों की दुनिया में उन्हें आज भी कहा जाता है, ‘होटल वालों का राजा और राजाओं का होटल वाला’। याद रखने वाली बात यह है कि वर्ष 1850 में जन्‍मे सेजार रित्‍ज का निधन 1918 में हो चुका है, पर उनकी कामयाबी की दास्‍तान आज भी प्ररेणा देती है।

15 साल की उम्र में मिली वेटर की नौकरी

अपने गरीब पिता की तेरहवीं संतान सेजार जब गांव से ब्रिग शहर में काम करने आया था, तो उसकी उम्र मात्र 15 साल थी। ब्रिग शहर के एक ठीक-ठाक होटल में संयोग से वेटर की नौकरी मिल गई। वह बहुत कम पढ़ा-लिखा था। देहात का होने के कारण काम में कुशल नहीं था। उम्र के कारण भी कुछ गलतियां हो जाती थीं। हर गलती के लिए उसे फटकार पड़ती थी। जब एक कस्‍टमर का ऑर्डर पूरा करने में उससे बड़ी गलती हो गई, फिर कहां थी उसकी खैर। मालिक ने दुत्‍कारते हुए कहा, तुम किसी होटल में वेटर का काम नहीं कर सकते। तुम इस काम के लायक बिल्‍कुल नहीं हो। तुम बिल्‍कुल नाकारा और नालायक हो। यहां तुम्‍हारा गुजारा नहीं हो सकता। फौरन दफा हो जाओ यहां से। कभी मत आना। तुम कुछ नहीं कर सकते।

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# Hotel King : अव्‍वल बनने का लिया संकल्‍प

होटल मालिक की दुत्‍कार ने कि तुम कुछ नहीं कर सकते हो, नालायक हो, लड़के को गहरे सदमे में डाल दिया। उसने मालिक से गुहार लगाई, पर एक न सुनी गई। होटल से निकाले जाने के बाद असहाय हो गया, पर हताश नहीं हुआ। उसने तय कर लिया कि शहर से गांव जाकर वह फिर खेती नहीं करेगा। होटल मालिक की फटकार और दुत्‍कार ने ही उसके मन में संकल्‍प पैदा किया। उसने ठान लिया कि जिस होटल उद्योग के लिए उसे नाकाबिल और नाकारा घोषित किया गया है, उसमें ही खुद को अव्‍वल साबित करना है।

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वेटर से बन गया मैनेजर  # Hotel King

वह साल था 1867 का। सेजार को पता चला कि पेरिस में एक बड़ी वैश्विक प्रदर्शनी लग रही है। वहां आए मेहमानों के लिए रेस्तरां और होटलों में मजदूरों की आवश्‍यकता होगी। और वह चल दिया पेरिस। वहां उसे एक होटल में सहायक वेटर की नौकरी मिल गई। काम ऐसा करता था कि ग्राहकों का मिजाज खुश हो जाता था। हर ग्राहक की एक-एक जरूरत समय से पहले पूरा करता था। तरक्‍की का नया-नया द्वार खुलता गया और वह होटल का मैनेजर बना दिया गया।

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फिर शुरू हो गया अपना रेस्‍तरां-होटल खोलने का सिलसिला

सेजार ने पेरिस के एक से एक विद्वानों, गुणवानों, रईसों से संपर्क बनाना शुरू किया। जो भी संपर्क में आया, सेवा-सत्कार का मुरीद होता चला गया। सबके अच्‍छे गुणों को अपनाना सेजार ने स्‍वभाव में ढाल लिया।  नौकरी छूटने की भी नौबत आई, पर अब योग्यता ऐसी हो गई थी कि दूसरी नौकरी आसानी से मिल जाती थी। बेहतर सेवा के सिलसिले के साथ ही अच्छे सेवा भावी वेटरों, मैनेजरों, खानसामों की टीम बनने लगी। उस दौर के सबसे अच्छे खानसामे अगस्ते स्कोफेयर को सेजार ने अपना स्‍थायी दोस्त बना लिया। इसके बाद अपना होटल, रेस्तरां खोलने का शुरू हो गया सिलसिला और धीरे-धीरे कायम हो गया होटलों का साम्राज्‍य।

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