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जीरो सुविधाओं के साथ बोकारो बना पहला डिजिटल गांव

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गलत आंकड़ा प्रस्तुत कर अधिकारी ने सरकार  को लगाया चूना

झारखण्ड :  एक तरफ सरकार जन आकांक्षाओं से जुड़ी योजनाओं को सफल बनाने के लिए पैसा पानी की तरह बहा रही है। तो दूसरी तरफ अधिकारी गलत आंकड़ा प्रस्तुत कर सरकार और जनता को चूना लगाने में जुटे हुए हैं। ऐसा ही चौंकाने वाला मामला झारखंड के बोकारो जिले के चंदनकियारी विधानसभा क्षेत्र की हैं।

बोकारो के 2 गांवों को बताया डिजिटल गाँव 

बोकारो जिले के दो गांवों को झारखंड के सबसे पहले डिजिगांव (डिजिटल गाँव) के रूप में घोषित कर दिया गया है।डीजी गांव में चंदनकियारी पूर्वी व कुर्रा हैं शामिल।  डिजिटल इंडिया संबंधी केंद्र सरकार की योजनाओं को सफलता पूर्वक सुदूर इलाके ग्राउंड लेवल तक लाने को लेकर इन्हें डिजिगांव की संज्ञा दी गयी है।  अर्थात उक्त दोनों डिजिटल गांवों में वाई-फाई, आधार सीडिंग, टेलीमेडिसीन, डिजि-पे सहित अन्य सभी डिजिटल सुविधायें शत-प्रतिशत लोगों तक पहुँच गई है। लेकिन सच्चाई इसके उलटे है। कोई सुविधा नहीं। खर्च तो करोड़ों हुए लेकिन सुविधाएं संचिकाओं तक सीमित रह गए।गांव की न तो ब्यवस्था बदली व ना ही सुविधा मिली.एक डिजिटल इंडिया के बोर्ड लगे जो आंधी तूफान के भेंट चढ़ गए।तत्कालीन डीसी महिमा पतरे ने सभी सुविधाएं मिलने की घोषणा कर दी, तीन साल बीतने के बाद कुरा पंचायत में जाकर कथित डिजिटल गांव का रियलिटी टेस्ट हमारे संबाददाता दिनेश पांडेय ने किया, तो हकीकत कुछ और ही सामने आई। टेस्ट में ये बात सामने आई कि जिले के अधिकारी से लेकर राज्य के मुख्यमंत्री तक पीएम मोदी को धोखा देने में जुटे हुए हैं।

गांव में मात्र बामुश्किल 2 से 4 घंटे बिजली आती है

खैर, इन दो पंचायतों को डिजिटल गांव घोषित किये जाने के बाद आम लोगों में ये चर्चा बानी हुई थी कि आखिर दोनों पंचायत को ये अवसर मिला तो कैसे? जब सवाल उठा तो इसकी पड़ताल भी जरुरी थी। हमारे संवाददाता सबसे पहले कुरा पंचायत के कुरा गांव पहुंचे। रास्ते में बिजली के खम्भों पर डिजिटल गांव की होडिंग्स लगे मिले। गांव में पंचायत भवन से पहले केंद्रीय मंत्री की घोषणा से पूर्व यहां पोल के सहारे बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगाये गए थे। गांव घुसने से पहले डिजिटल गांव का एहसास तो जरुर हो रहा था। लेकिन पंचायत भवन में स्थित प्रज्ञा केंद्र में ताला लटका मिला। पूछने पर लोगों ने बताया कि अब खुलता नहीं है।  पूर्व पंस सदस्य और एक छात्र ने प्रज्ञा केंद्र के महीनों से नहीं खुलने की बात कही।  ग्रामीणों ने बताया की बोर्ड मे जो डीजीगांव मे आने वाली सुविधा का जिक्र था उसका बोर्ड मे छपाई के अलावा एक प्रतिशत भी इस गांव मे नहीं है। यह सिर्फ यहां के अधिकारियों द्वारा सरकार से एवार्ड लेने के लिए खेल रचा गया है। उन्होने बताया गांव में मात्र बामुश्किल 2 से 4 घंटे बिजली आती है। प्रज्ञा केंद्र खुलते ही नहीं है। 2 किलोमीटर दूर से पीने का पानी लाना पड़ता हैं। अन्य कोई ऐसी विशेष सुविधा गांव को मुहैया नहीं कराई गई है जिससे पूरा को डिजिटल गांव कहा जाए।

इसे भी पढ़े : 46,583 मरीजो ने कोरोना के खिलाफ जिती जंग : झारखण्ड

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