कोहराम लाइव डेस्क : Tradition : दुर्गा विसर्जन के बाद महिलाएं सिन्दूर खेला करती हैं। शारदीय नवरात्रि के अंतिम दिन दुर्गा पूजा और दशहरा के अवसर पर बंगाली समुदाय की महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं। इसके बाद सुहागिन महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। इसे ही सिंदूर खेला कहा जाता है। सिंदूर खेला को मां की खुशी-खुशी विदाई के रूप में मनाया जाता है। सिंदूर खेला के वक्त विवाहित महिलाएं पान के पत्तों से मां दुर्गा के गालों को स्पर्श करते हुए उनकी मांग और माथे पर सिंदूर लगाकर अपने सुहाग की लंबी आयु की मुराद मांगेंगी। इसके बाद महिलाएं मां को पान और मिठाई का भोग अर्पित करेंगी।
सिंदूर खेला की परंपरा 450 साल पहले शुरू हुई थी
दशमी पर सिंदूर लगाने की परंपरा Tradition सदियों से चली आ रही है। खासतौर से बंगाली समाज में इसका बहुत महत्व है। ऐसी मान्यता है कि मां दुर्गा साल में एक बार अपने मायके आती हैं और वह अपने मायके में 10 दिन रुकती हैं, जिसको दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। सिंदूर खेला कि रस्म पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में पहली बार शुरू हुई थी। लगभग 450 साल पहले वहां की महिलाओं ने मां दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी, कार्तिकेय और भगवान गणेश की पूजा के बाद उनके विसर्जन से पूर्व उनका श्रृंगार किया और मीठे व्यंजनों का भोग लगाया। खुद भी सोलह श्रृंगार किया। इसके बाद मां को लगाए सिंदूर से अपनी और दूसरी विवाहित महिलाओं की मांग भरी। ऐसी मान्यता थी कि भगवान इससे प्रसन्न होकर उन्हें सौभाग्य का वरदान देंगे और उनके लिए स्वर्ग का मार्ग बनाएंगे।
देवी बोरन
मायता है कि नवरात्रि में मां दुर्गा 10 दिनों के लिए अपने मायके आती हैं। इसे ही दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। लेकिन दशमी पर मां पार्वती अपने पति के घर भगवान शिव के पास वापस कैलाश पर्वत पर चली जाती हैं। सौराल विदाई (विसर्जन) से पहले मां के साथ पोटली में श्रृंगार का सामान और खाने की चीजें रखी जाती हैं। इसे देवी बोरन कहा जाता है।
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