रांची : इस्लामिक कैलेंडर के तीसरे महीने रबिउलअव्वल की 12 तारीख को मनाए जाने वाले Eid Miladunabi ईद मिलादुन्नबी की अपनी अहमियत है। इस दिन आखिरी नबी और पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब का जन्म हुआ था। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग जश्न मनाते हैं, मिठाइयां बांटते हैं और जुलूस निकालते हैं।
रांची में मनाया गया जश्न
पैगंबर मोहम्मद साहब के यौमे पैदाइश के मौके पर रांची में Eid Miladunabi जश्न मनाया गया। मस्जिदों मदरसों में सुबह से ही लोगों का आना-जाना लगा रहा है। पैगंबर मोहम्मद साहब के नाम से लोगों ने फातिहा करवाया और गरीब के बीच मिठाइयां बांटी। सुबह से ही मस्जिदों और मदरसों में दरूद और सलाम पढ़ा गया। इस मौके पर जिला प्रशासन की ओर से सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए गए थे। मस्जिदों के बाहर पुलिस बल तैनात रहे।
Eid Miladunabi पर मुख्यमंत्री ने दी बधाई
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी ईद मिलादुन्नबी के अवसर पर राज्यवासियों को शुभकामनाएं दी। अपने ट्वीट में उन्होंने कहा कि, आप सभी देश और झारखंडवासियों को ईद मिलादुन्नबी की दिली मुबारकबाद। यह पर्व आप सभी को स्वस्थ रखे, खुशहाल रखे।
धूमधाम से मनाया जाता है जश्न
भारत और एशिया महादेश के कई इलाकों में पैगंबर के जन्मदिवस पर खास इंतजाम किया जाता है। लोग जलसा-जुलूस का आयोजन करते हैं और घरों को सजाते हैं। कुरआन की तिलावत और इबादत भी की जाती है। गरीबों को दान-पुण्य भी दिए जाते हैं। जम्मू-कश्मीर में हजरत बल दरगाह पर सुबह की नमाज के बाद पैगम्बर के मोहम्मद के अवशेषों को दिखाया जाता है। हैदराबाद में भव्य धार्मिक मीटिंग, रैली और पैरेड भी किया जाता है। हालांकि, इस साल कोरोना वायरस महामारी की वजह से कार्यक्रम को धूमधाम से करने की इजाजत नहीं है, लेकिन घरों और मस्जिदों में पैगम्बर को याद किया जा रहा है।
क्यों मनाते हैं Eid Miladunabi
ईद मिलादुन्नबी इस्लाम के इतिहास का सबसे अहम दिन माना जाता है। पैगम्बर मोहम्मद साहब का जन्म इस तीसरे महीने के 12वें दिन हुआ था। इस दिन को मनाने की शुरुआत मिस्र से 11वीं सदी में हुई थी। फातिमिद वंश के सुल्तानों ने इस ईद को मनाना शुरू किया। पैगंबर की इस दुनिया से जाने के चार सदियों बाद इसे त्योहार की तरह मनाया जाने लगा।