Ranchi (Arti Gupta) : सुहागिनों की श्रद्धा और आस्था कल बरगद पेड़ के नीचे दिखाई देगी। हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन वट सावित्री की अराधना कर हर सजनी सजती है अपने सजना के लिए। इस बार 19 मई को सोलह श्रृंगार कर सुहागिनें अपने सुहाग की सलामती और उनकी लंबी उम्र के लिए व्रत रखेगी।
घर की बूढ़ी मां, बरगद गाछ की डाल जुटा लाई है। घर के आंगन में गड़ी डाली लेगा विशाल वट वृक्ष का रूप। बरगद के जड़ को सींचने का जल डालेगी सुहागिनें। हाथों में रक्षासूत्र लिए फेरा भी लगेगा, सावित्री और सत्यवान की कथा के साथ पिया के चरण धोने का रिवाज भी होगा।
सावित्री पूजा की तैयारी में जुटी एक व्रती नीतू ने बताया कि राजपाट से हाथ धोने के बाद सावित्री अपने पति सत्यवान के साथ एक जंगल में बैठी हुई थी। तभी सत्यवान के प्राण हरण कर यमराज ले जाते हैं। तब यमराज के पीछे-पीछे भागती है सावित्री। पलट कर यमराज उसे लौट जाने को कहते हैं। पर सावित्री कहती है जहां मेरे पति वहीं मैं। यही है पत्नी धर्म। सावित्री की इस बात से खुश हो जाते हैं यमराज और मागंने को कहते हैं तीन वरदान।
पहले वरदान में वह मांगती है अपने अंधे सास-ससुर के आंखों की रोशनी। दूसरे में खोया हुआ राजपाट और तीसरे में एक सौ पुत्र होने का वरदान। वरदान देकर अचानक फिर यमराज पीछे मुड़ते हैं। देखते हैं वह लौटी नहीं। पीछे-पीछे आ ही रही है। तब झल्ला जाते हैं यमराज देवता। क्रोध भरे लहजे में कहते हैं… लौट जाओ। पर सावित्री सुनने वाली कहां थी। उससे कहा गया… तीन वरदान मांगी, तीनों मिला। फिर पीछे क्यों। तब सावित्री यमराज देवता को याद दिलाती है कि तीसरा वरदान पुत्र प्राप्ती का दिया। पर यह कैसे संभव। आप तो मेरे प्राणनाथ को लिये जा रहे हो। तब यमराज देवता को जीवन दान देना पड़ा। जब सावित्री वट वृक्ष को पास लौटी और वहां शिथिल पड़े पति को हिलाया डुलाया तो पाया कि उसका सुहाग जिंदा है। तब से वह देवी सावित्री कहलाने लगी और सुहागिनें वट सावित्री की पूजा करने लगी। आम धारना है कि यह पूजा करने से पति की उमर लंबी होती है। संतान सुख मिलता है। घर में सुख शांति छाई रहती है। सुनें क्या बोली कुछ व्रती…
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