कोहराम लाइव डेस्क : एकांत और अकेलापन का अर्थ अलग-अलग होता है। हम जब परेशान होते हैं तो भीड़ में अकेले हो जाते हैं। उसे एकांत नहीं समझना नहीं चाहिए। एकांत तो आनंद की अनुभूति प्रदान करता है। अकेलेपन को एकांत में बदलना चाहिए। एकांत और अकेलेपन के बारे में कई विद्वानों ने अपने विचार दिये हैं। आध्यात्मिक गुरु ओशो ने अपने गीता दर्शन के अध्याय 6 में बताया है कि जब भी एकांत होता है, तो लोग उस अकेलेपन को ही एकांत समझ लेते हैं। लोग जैसे ही अकेलापन महसूस करते हैं, हम तत्काल उसे भरने के लिए कोई उपाय करने करने लगते हैं। हम अपने अकेलेपन को जल्दी से जल्दी भर लेते हैं।
अकेलापन निराशा लेकर आता है
अकेलापन निराशा लेकर आता है। अकेलेपन में व्यक्ति नकारात्मक विचारों से घिर जाता है। उसे कहीं भी कोई ऐसा उपाय नहीं सूझता है, जिससे उसकी समस्याएं खत्म हो सके। नकारात्मक विचारों से व्यक्ति अकेलापन बहुत ही गंभीर हो जाता है। घर-परिवार के लोगों की याद आती है। एकांत में व्यक्ति को आनंद मिलता है। एकांत में प्रसन्नता मिलती है। मन शांत रहता है और भगवान की ओर मन का झुकाव होता है। एकांत में हम ध्यान कर सकते हैं।
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नकारात्मक विचार से होती हैं बीमारियां
अकेलापन मन ने नकारात्मक विचार भर देता है। लंबे समय तक इस स्थिति में रहने से व्यक्ति को मानसिक बीमारियां हो सकती है। अनजाना भय सताने लगता है। मन में गलत भावनाएं जागने लगती हैं। इसीलिए अकेलेपन से बचना चाहिए। जब भी नकारात्मक विचार बढ़ने लगे तो मन को शांत करना चाहिए। सोच को सकारात्मक बनाना चाहिए।
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