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Bachelor पर कोरोना की बुरी नजर, कुंवारे हैं तो जल्‍द कर लीजिए शादी

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कुंवारे हैं तो बचकर रहिए, जल्‍दी शादी की सोचिए

उम्र हो गई तो बच्‍चों की शादी के लिए मम्‍मी-डैडी और दादा-दादी को भी दिखानी चाहिए तत्‍परता

कोहराम लाइव डेस्‍क : Bachelor यानी स्‍नातक नहीं भाई साहब। बीए, बीएससी, बीकॉम की डिग्री वाली यह बात नहीं है। हमारे Bachelor का मतलब जो शादी-शुदा नहीं होना है। शादी-शुदा होना हमारे समाज में एक पारिवारिक दायित्‍व भी है। बुजुर्ग समय पर घर के युवकों यानी अपने नाती-पोतों के ब्‍याह के लिए जोर देते हैं, तो इसमें सिर्फ आगे की पीढ़ी की औलाद ही बढ़ाने की इच्‍छा नहीं होती, बल्कि परिवार के प्रति उनपर जिम्‍मेदारी का बोझ भी डालना होता है। हम यह भी कहते हैं कि जोडि़यां तो ऊपरवाला जन्‍म के साथ ही तय कर देता है। बस सही अवसर आते ही लड़का या लड़की का ब्‍याह हो जाता है।

कोरोना से प्रभावित हुई शादियां 

इधर, कोरोना काल ने समाज में शादियों के अवसर को भी प्रभावित किया है और जब यह सुनने को मिलता है कि शादी-शुदा नहीं होने पर कोरोना से जान को अधिक खतरा हो सकता है, तो कान खड़े होना स्‍वाभाविक है। जी हां, दुनिया की जानी-मानी नेचर कम्‍युनिकेशन पत्रिका में छपे प्रकाशित खास अध्‍ययन में यह जानकारी सामने आई है कि शादी-शुदा न होना भी कोरोना से जान का संकट बढ़ाने में मददगार है। उनपर कोरोना की बुरी नजर है। इसलिए कोरोना से Bachelor को अधिक बचकर रहना है और जल्‍दी शादी के बारे में सोचना जरूरी है। अभिभावकों को भी इसके लिए अधिक तत्‍पर रहना होगा।

इसे भी पढ़ें : Supreme court ने झारखंड हाईकोर्ट के फैसले पर लगायी रोक

नवंबर 2019 से जब कोरोना ने चीन के बाहर फैलना शुरू किया तो सब जगह इलाज के साथ उसके नेचर और फैलाव के कारणों पर भी जोर देकर शोध का काम शुरू किया गया। प्रारंभ में 10 साल से छोटे बच्‍चों और 60 साल के अधिक के बूढ़ों पर कोरोना की बुरी नजर की बात पर जोर दिया गया। इसलिए उन्‍हें बचाने के लिए घर में रहना जरूरी है। नेचर कम्‍युनिकेशन पत्रिका में छपे हालिया शोध के बाद Bachelor पर कोरोना की बुरी नजर के घातक होने की बात सामने आई है, इसलिए इस चिंता से अवगत कराना जरूरी है। उम्र हो गई तो मम्‍मी-डैडी और दादा-दादा को भी बच्‍चों की शादी के लिए प्रयास में लग जाना होगा।

दंपतियों की तुलना में कम सुरक्षित वातावरण

नेचर कम्युनिकेशन पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, स्टॉकहोम विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने यह पाया है कि किसी व्यक्ति की कम आय, शिक्षा का निम्न स्तर, अविवाहित होना और विदेश में रहने जैसे कारकों से भी उसकी कोरोना से मौत का खतरा बढ़ जाता है। जैसा कि शोधार्थी बताते हैं, इन वर्गों की खराब जीवनशैली उनकी सेहत पर असर डालती है। इस कारण उनपर कोरोना का खतरा बढ़ जाता है। अकेले जीवन बिताने वाले लोग दंपतियों की तुलना में कम सुरक्षित वातावरण में रहते हैं।

20 साल से अधिक उम्र के मृतकों का डाटा

दुनिया के सुप्रसिद्ध समाजशास्त्री व अग्रणी शोधकर्ता स्वेन डेफरल का कहना है कि कम आमदनी, कम शिक्षित पुरुषों में संक्रमण से मौत का खतरा अधिक था। डेफरल के अनुसार, पुरुषों की जैविक बनावट और जीवनशैली के कारण उनके वायरस की जद में आने की संभावना अधिक होती है। जीवनशैली से जुड़े दूसरे कारक जैसे अविवाहित होना या कम आमदनी उनके खाने-पीने की आदतों को प्रभावित करते हैं। यह अध्ययन स्वीडन में संक्रमण से मरे 20 साल से अधिक उम्र के मृतकों के डाटा के आधार पर सामने आया है।

कोरोना से गरीब, अशिक्षित और अविवाहित अधिक मरे

शोधकर्ताओं द्वारा मृतकों के सरकारी डाटा की तुलना उस सरकारी डाटा से की गई, जिसमें इन सभी के निवास स्थान, जन्म स्थान, वैवाहिक स्थिति, शिक्षा और आयु का विवरण दर्ज था। इस आधार पर शोधकर्ताओं ने पाया कि जो लोग देश से बाहर किसी मध्यम या कम आय वाले देश में पैदा हुए थे, उनकी कोविड -19 के संक्रमण से ज्यादा मौत हुई। इसी तरह गरीब, अविवाहित और अशिक्षित लोग भी अधिक संख्‍या में मरे।

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