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जब डॉ अली की खोई आवाज लौट आई, तब क्या बोल गये डॉ वर्मा से… देखें

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Ranchi (Pawan Thakur) : रांची के जानेमाने असाध्य रोग विशेषज्ञ डॉ. उमा शंकर वर्मा को दिल्ली में विश्व चिकित्सा सेवा रत्न अवॉर्ड से नवाजा गया है। चिकित्सा जगत में बेहतर सेवा देने की खातिर उन्हें यह बड़ा सम्मान मिला। रांची के BAU के चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ वर्मा ने मेडल हासिल करने के बाद कोहराम लाइव से सिर्फ इतना कहा कि उन्हें तब बेहद सुकून मिलता है, जब उनकी दवा के असर से उन्हें ढेर सारे दुआयें मिल जाती है। संसार में कुछ वैसे चीजें हैं जो इंसानों के वश में नहीं। इसमें यश और अपयश भी शामिल।

डॉ अली ने फोन पर की बात

डॉ अली
डॉ सैयद साकिर अली

डॉ वर्मा नेअपने कुछ पुराने लम्हे को याद कर बताया कि उन्होंने तब सबसे ज्यादा सुकून और खुशी हुई थी, जब डॉ सैयद साकिर अली ने फोन कर उनसे बातें की। उन्हें अब भी याद है कि डॉ सैयद की आवाज चली गई थी। देश विदेश में वर्षो इलाज कराने के बाद भी वह बोल नहीं पाये। डॉ सैयद एक बेहतर फिजियोथैरेपिस्ट हैं और कुछ अलग कर दिखाने के चलते उन्हें राष्ट्रपति पदक भी मिला है। आवाज चले जाने से दुखी, निराश और हताश डॉ सैयद अली उनसे इलाज कराने रांची आये। उन्होंने उनका इलाज शुरू किया। दूसरे ही दिन उनके गले में सुरसुराहट होने लगी। तीसरे ही दिन चमत्कार हुआ और डॉ सैयद अली बोलने लगे। उन्हें पूरी तरह से ठीक होने में करीब 19 रोज लग गये। ठीक होने के बाद डॉ अली उन्हें फोन किया। फोन पर उन्हें बोलता सुन वह अवाक रह गये। उनके मुख से बस इतना निकला, ”डॉ वर्मा यू आर जीनियस,  शुक्र है आपका, मैं बोलने लगा।” लंदन तक इलाज करा थक और हार चुके डॉ सैयद अपने किसी दोस्त की सलाह पर डॉ वर्मा से दिखाने रांची आये थे। उनका दोस्त पटना का है।

चूर-चूर हो गई हो गई थी BSF जवान मोना पांडेय की कमर की हड्डी

वैसे डॉ उमा शंकर वर्मा की दवा से कईयों की जिंदगी की टिमटिमाती लौ बुझने से बची है, पर डॉ वर्मा BSF के जवान मोना पांडेय को भी नहीं भूल पाये हैं। जवान मोना राजस्थान बॉर्डर पर फायरिंग करते समय पहाड़ की ऊपर चोटी से नीचे गिर गये थे। उनकी कमर की हड्डी चूर-चूर हो गई। सेना अस्पताल से लेकर कई नामी-गिरामी हॉस्पिटल में उनका इलाज हुआ, पर कोई फायदा उन्हें नहीं हुआ। तब रांची के लॉ यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ बीसी निर्मल ने मोना के मामा से कहा कि ”आप रांची में डॉ वर्मा से मिले, उनके हाथ में यश है, वो जरूर ठीक हो जायेंगे।” मोना के मामा डॉ वर्मा से मिले और उन्हें अपने भगिना की हालत के बारे में बताया। वहीं उनसे कुछ दवा ले गये। करीब एक माह के बाद असर दिखने लगा। करीब 72 परसेंट मोना ठीक हो गये। दो माह में 93 परसेंट ठीक हो गये। इसके बाद जवान मोना पांडेय रांची आकर डॉ वर्मा से मिले। तब उन्होंने जवान का पूरे तन मन से इलाज शुरू किया। नतीजा मोना पांडेय पूरी तरह से ठीक हो गये और एक बार फिर से BSF में बहाल कर लिये गये।

नेपाल में नवाजे गये डॉ वर्मा

लकवाग्रस्त बबली और अनुराधा भी हो गई ठीक

वहीं रांची के अपर बाजार इलाके में रहनेवाली बबली कुमारी और अनुराधा भी जब खुद बुल कर डॉ वर्मा के चेंबर में आती है तो उनका मन गदगद हो जाता है। लकवाग्रस्त होकर बबली और अनुराधा वर्षों तक बेड पर यूं ही पड़ी रही। कुछ माह के इलाज में ही दोनों चलने लगी।

चंद महिनों के इलाज में ठीक हो गये कई किडनी पेशेंट 

इसी तरह झारखंड सरकार के कर्मचारी श्रवण कुमार सिन्हा, कांके रोड रांची के राजन कुमार सिंह, सिमडेगा की भागीरथी श्रीवास्तव, मुंबई के धर्मेंद्र सिंह, दिल्ली के अमित कुमार मिश्रा, पूर्णिया बिहार के किशोर कुमार वर्मा, ईटीवी हैदराबाद के विनय विनीत जैसे कई लोग डॉ वर्मा के योगदान को भूला नहीं सके हैं। इन सबका किडनी पूरी तरह से डैमेज हो गया था। चंद महीनों के इलाज में सब ठीक हो गये।

कोमा से चले गये पेशेंट भी हुए स्वस्थ

ब्रेन हेमरेज होकर रांची के दो बड़े हॉस्पिटल के डॉक्टरों के जवाब दे देने के बाद डीप कोमा में चले गये रांची के लालपुर में रहनेवाले  सिद्धार्थ कुमार साहू, झुमरीतिलैया के गुरमीत छाबड़ा, तमाड़ के शिक्षक धनंजय महतो, डालटनगंज के संजीव श्रीवास्तव, खेत मोहल्ला हिंदपीडी के सुभान खान भी ठीक ठाक होकर अपनी शेष जिंदगी बेहतर ढंग से गुजार रहे।

भर गई सूनी गोद 

डॉ वर्मा ने अपनी खुशी का इजहार करते हुए खुलासा किया कि निसंतान सुनीता देवी, चंदा देवी, सबीना खातून, सरिता श्रीवास्तव जब गोद में अपने बच्चे लिये उनके चेंबर में आती हैं तो उन्हें अच्छा लगता है। उनकी इलाज से ये मां बन गई। महामारी कोरोना में घर बार छोड़ मरीजों की सेवा में जुटे डॉ वर्मा के पास लंबी चौड़ी नामों की लिस्ट है, जिन्होंने UV 66 से सेवन से कोरोना जैसे खतरनाक बीमारी को मात दी।

नेपाल में नवाजे गये डॉ वर्मा

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